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पकड़ौवा शादी / kidnapping marriage


पकड़ौवा शादी

एक अच्छे रिश्ते की शुरुआत एक दूसरे को जानने से होती है, लेकिन जो रिश्ता अपराध से हो, जबरदस्ती से जोड़े जाएं, इतनी कड़वाहट से शुरू हो, उसका भविष्य क्या होगा?
मान लीजिए कि आप एक जवान औरत हैं जिसकी शादी करने के लिए मां-बाप इतने परेशान हैं कि वो एक मर्द को अगवा कर ज़बरदस्ती शादी करवा देते हैं!
इस 'पकड़ौवा शादी' में ना आपकी मर्ज़ी जानी जाती है, ना उस आदमी की.

यहां पर कई प्रश्न उठते है, जिसमें
*कोई लड़की ऐसी शादी के लिए कैसे मान सकती है?
*शादी के बाद अगर लड़का उसे ना स्वीकार करे तो?
*गुस्से में औरत को घर ले भी आए तो ऐसी शादी में वो रहेगी कैसे?
*पकड़ौवा विवाह' की ये सच्चाई जानते हुए भी लड़की के परिवारवाले अपनी बेटी को इस दलदल में क्यों धकेलते हैं?

पटना विश्वविद्यालय में 'वुमेन स्टडीज़' सेंटर शुरू करनेवाली इतिहास की प्रोफ़ेसर भारती कुमार के मुताबिक ये सामंती समाज की देन है

वो कहती हैं, "उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में सामाजिक दबाव इतना है कि लड़की के परिवारवाले इसी कोशिश में रहते हैं कि कैसे जल्द से जल्द अपनी जाति में इसकी शादी कर दें."

'पकड़ौवा विवाह' ज़्यादातर ग्रामीण इलाकों में किया जाता रहा है और वहां लड़कियों की ज़िंदगी शादी, बच्चे और परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती है.
बिहार पुलिस के मुताबिक साल 2017 में क़रीब 3500 शादियों के लिए अपहरण हुए. इनमें से ज़्यादातर उत्तरी बिहार में हुए.
ऐसे ही बिहार में ना जाने कितने वर्षों से चली आ रही ये प्रथा कब तक खत्म होगी कुछ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि जब तक दहेज, लड़की माथे की सिरदर्दी होगी तब तक तो नहीं हो सकता, जिसमें गरीबी भी एक कारण है।
नोट-
(कुछ तथ्य बीबीसी से लिए गए हैं)


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