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भूमि कहां तक जाए धोती सेती बांध पगड़ियां नाचे लठिया अइसन किस्सा गाये छेदी । नचनई नाचे मन भर कै कहां तक जाए धोती सेती रोज ऊलहना लावै भरकै हमके बाबू मारै चढ़ कै। जईसन तईसन बात बनै तईसे कुद पढ़ै घर भेदी ले ठहाका सुरसा कहदे बोली में ऊ लाठी पठई बाबू लेहै उठाई धोती बांध कमरिया पै खुब भजै हमका ऊ लाठी दै दै। चल किनारा अगलै बारे नदियां के ऊफान भर कै कहत कहत सुखाई गयलै हमरै गलियां उनकौ बतिया। चिपकाए रहलेन हाथ कसी कै दादा रहलेन ठाठ कहीं कै माई ढेवढ़ी डाकत है कि न ताकै हमरा लालाई कै तबै ऊलहना आई गईल केकर बछवा छोड़लै रहली सब देखें रहल बा उकै तोहरा बेटवा नाक भरई बा उकै समझाई लै ऐ दादा। जाके कजरी के व्याही में मिलै है खुब मिठाई-सिठाई चपलै रहलै हमहु तबसै देखत हैं कजरी कै बाबू हमरो बिहाहे के बात इही चलल है खुब

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