सत्ता की चाह
किसी भी देश में अपने सरकारी स्वामित्व को बेचने के एक कारण में जीवन पर्यन्त उस विशेष पार्टि के आजीवन बजट कि व्यवस्था करना है जो उसे किसी निजी स्वामित्व में हस्तांतरित करके कर लेती है, जिससे वह मजबूती से चुनाव मैदान में उतरे, शायद यही मंसा कई देशों में हो, परन्तु यह भारत में भी बहुत गंभीर रूप से पनप रहीं हैं सत्ता कि चाह में। एक ओर दुनिया का कोई भी व्यक्ति सत्ता प्राप्त करने के बाद उसके बर्चस्व को नहीं खोना चाहता, और फिर यहि सत्ता ना खोने कि चाह से एक तानाशाही शासन की शुरुआत होती है। जिसका भुगतान जनता को बहुत ही भुगतने वाला होता है।
किसी भी देश में अपने सरकारी स्वामित्व को बेचने के एक कारण में जीवन पर्यन्त उस विशेष पार्टि के आजीवन बजट कि व्यवस्था करना है जो उसे किसी निजी स्वामित्व में हस्तांतरित करके कर लेती है, जिससे वह मजबूती से चुनाव मैदान में उतरे, शायद यही मंसा कई देशों में हो, परन्तु यह भारत में भी बहुत गंभीर रूप से पनप रहीं हैं सत्ता कि चाह में। एक ओर दुनिया का कोई भी व्यक्ति सत्ता प्राप्त करने के बाद उसके बर्चस्व को नहीं खोना चाहता, और फिर यहि सत्ता ना खोने कि चाह से एक तानाशाही शासन की शुरुआत होती है। जिसका भुगतान जनता को बहुत ही भुगतने वाला होता है।
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